पटना:- बिहार में कुल 599 वित्तरहित इंटर कॉलेजों है जो सरकार के अनुदान से चलती है। लेकिन लगभग 6-7 वर्षों से अनुदान नहीं मिलने से हजारों शिक्षक के ऊपर आर्थिक संकट मंडरा रहा है, शिक्षक जैसे तैसे अपना गुजारा कर रहे है। लेकिन सरकार लगातार नजरअंदाज कर रही है जिससे अनुदानित कॉलेज के ऊपर एक खतरा मंडरा रहा है।
राज्य के वित्तरहित इंटर कॉलेजों में 10 हजार से अधिक शिक्षक कार्यरत हैं और वर्ष 2015 से इनका भुगतान लंबित है। 7 साल से वेतन की आस देख रहे शिक्षकों को अनुदान की राशि मिलने से वेतन मिल पाएगा। लेकिन सरकार की ओर से लगातार टाल-मटोल कर रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि बिहार की अधिकतर उत्क्रमित विधालय को अपग्रेड करके +2 कर दिया गया है। जिससे अब अनुदानित कॉलेजों के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। रक्सौल अनुदानित महिला कॉलेज के शिक्षक कृष्णा सिंह कहते है कि “अनुदानित कॉलेजों से लाखों बच्चों के भविष्य के साथ शिक्षकों की जीविका भी जुड़ी हुई है, सभी सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद भी सरकार कॉलेजों को कई मापदंड में उलझाना चाहती है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि हजारों शिक्षकों ने इन कॉलेजों में अपने जीवन का हिस्सा लगा दिया है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।”
वित्तरहित स्कूल-कॉलेजों को अनुदान मिलने का पैमाना भी समझ लीजिए कि किस आधार पर अनुदान मिलता है। अनुदान की राशि प्रदान करने का पैमाना यह है कि स्कूल या कॉलेज में प्रथम आने वाले छात्र के मद में 4500, द्वितीय आने वाले छात्र के मद में 4000 और तृतीय आने वाले छात्र के मद में 3500 रुपए दिए जाएंगे। राज्य में छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ऐसे में परीक्षा में प्रथम आने वाली छात्रा के प्रदर्शन के एवज में स्कूल को 4700, द्वितीय श्रेणी से पास होने वाली छात्राओं के मद में 4200 और तृतीय श्रेणी से पास होने वाली छात्राओं के एवज में 3700 रुपए वित्तरहित स्कूल-कॉलेजों को अनुदान राशि के रूप में जोड़ कर दिये जाएंगे।